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के आषाढशुदिछठके (६ ) दिन माहणकुण्डग्रामनगरमें ऋषभदत्तब्राह्मणकी देवानंदाभार्याकी कुक्षिमें उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रके साथ चन्द्रका योग आनेसे उत्पन्न भये ॥ तब देवानंदाब्राह्मणीने चौदै (१४) स्वप्ना देखा। सो कहते है । सिंह १ हाथी २ वृषभः ३ लक्ष्मी ४ पुष्पमाला २-५ चन्द्र ६ सूर्यः ७ ध्वज ८ पूर्णकलशः ९/ पद्मसरोवर १० क्षीरसुमुद्रः ११ देव विमानः १२ रत्नराशिः १३ निर्धूमअग्निः १४ यह १४ खन्ना क्रमसे देखा वाद आश्विनवदि त्रयोदशी (तेरस ) को इन्द्रकीआज्ञासे हरणेगमेषीदेवने क्षत्रियकुण्डग्रामनगरमें सिद्धार्थ राजाकी त्रिसिलारानीके कुक्षिमें मध्यरात्रिके समय संक्रमणकिया ॥ वाद चैत्रशुदि तेरसको आधीरात्रिके समय वीरप्रभुका जन्मभया ॥ उससमयमें ५६ दिशिकुमारियोंका आसनकम्पितभया ॥ अवधिज्ञानसे प्रभुका
जन्म जानके अत्यन्तहर्षितभई । आके जन्मकार्य सूतिकर्मादि करे ॥ वाद ६४ देवेन्द्रोंका आसन कांपा ॥ तब ४.६४ इन्द्र अवधिज्ञानसे प्रभुका जन्म जानके बहुतआनन्द पाये और अपने अपने विमानमें बैठके ६३ इन्द्र मेरुदशिखरपर आये सौधर्म इन्द्रः प्रभुके जन्मस्थान आके प्रदक्षिणा देके तीर्थकर तीर्थकरकी माताको नमस्कार करके |
माताको अवखामिनी निद्रादेके प्रभुको लेके मेरुपर्वतपर गया ॥ ६४ इन्द्रोंने स्नात्रमहोत्सवकिया बाद माताके पासमें रखके निद्रा दूरकर अपने ठिकाने गये, जिसदिनसे प्रभु गर्भ में आया उस दिनसे राजा धन, धान्य वर्ण रत्नादिकसे वृद्धिप्राप्त भये ॥ वाद गुणनिष्पन्नसर्वखजनोंके सामने माता पिताने बारवें दिनमें
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