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रहने बहुत उपसर्ग किया तथापि प्रभु ध्यानसे नहींचले ॥ मेरुके जैसे निष्कम्प रहे॥ श्रीवीरप्रभुके चौमासी, छमासी, दोमासी वगैरह तपकर्तेभयेको पक्ष अधिक साढे १२ बारह वर्ष गये ॥ उससमयमें जम्भिका ग्रामके पास, ऋजुवालुका नदीके किनारे श्यामाक कुटुम्बीके खेतके पासमें सालवृक्षके नीचे गोदोहासन रहेहुये दो उपवाससहित वैशाखशुदि दशमीके दिन पिछले प्रहरमें शुक्लध्यानध्यातेभये ऐसे श्रीमहावीरस्वामीको ४ घातीकर्मका |क्षय होनेसे केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न हुआ ॥ वाद ग्यारसके दिन पावापुरी नगरीके बाहर महशेनवनमें चार दनिकायके देव इकट्ठे होके समवसरनकिया ॥ इन्द्रभूत्वादिग्यारहगणधर स्थापे ॥ तीर्थप्रवर्तमान हुआ ॥ भगवान्
महावीरस्वामीके चौदह हजारसाधूभये ॥ चन्दनवालाप्रमुख छत्तीस हजार साधवियां भई शंखशतकादि एक लाख (१०००००) ५९ हजार श्रावक भये सुलसारेवतीप्रमुख तीन लाख ( ३०००००) १८ हजार श्राविका
भई ॥ अव प्रभुके चौमासोंकी संख्या कहते हैं दीक्षाके अनन्तर पहलीचौमासी अस्तिग्राम शूलपाणीयक्षके है मंदिरमें किया ॥ ३ तिन चौमासी चंपानगरीमें करी ॥ विशालानगरी और वाणीयग्राम नगरमें बारह (१२)
चौमासी करी ॥ राजग्रह नगरमें नालन्दक पाडेमें चौदह (१४) चौमासी रहे । मिथिलानगरीमे छै (६) ६ चौमासी भगवान् करी ॥ भद्रिकानगरीमें दो (२) चौमासी आलम्बिकानगरीमें एक (१) चौमासी अनार्य
देशमें एक (१) चौमासी सावत्थीनगरीमें एक (१) चौमासी पावापुरीनगरीमें हस्तिपाल राजाकी सभामें
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