________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दीपमालि- अंतिम चौमासी रहे ॥ श्रीवीरप्रभु अपने आयुःका अंत जानके भव्य लोगोके उपकारके वास्ते १६ प्रहरतक देशना पुन्यपालका व्या०
दिया उस अवसरमें पुण्यपालराजा प्रभुको वांदनेके वास्ते आया ॥ श्रीवीरप्रभुको वंदना करके हाथ जोडके के स्वप्नका ॥३३॥
अथे प्रश्न किया ॥ हे प्रभो आजरात्रिमें मैने आठ (८) स्वप्ना देखा सो आपके सामने कहूं ॥ जीर्णशालामें रहा। हुआ हाथी देखा १ बंदरचपलताकरताहुआदेखा २ क्षीरवृक्ष कांटोसे व्याप्तदेखा ३ कागलादेखा ४ मराहुआ सिंह भय करताहुआ देखा ५ अपवित्रभूमिमें (उकरडा) कमलऊगाहुआदेखा ६ खारीजमीनमें बीजवाते है हुये देखा ७ सोनेका कलश म्लानदेखा ८ राजाने खप्नोंका फल पूछा तब प्रभु बोले हेराजन् इन खप्नोंका फल |
एकाग्रचित्तसे सुनो ॥ पांचवे आरेमें दुःख, दरिद्र, रोग, शोक, भयादिकसे व्याप्त गृहस्थाश्रम जीर्णशालासदृश होगा। जिसमें गृहस्थरूप हाथी रक्त होके रहेगा ॥ और दुःखको सुखकरकेमानेगा। परन्तु उत्तम सुखदेनेवाली वृतशाला नहीं अंगीकारकरेगा ॥ यह पहले खनेका फल १ और पांचवे आरेमें बन्दरके जैसे चपलखभाववाले अल्पसत्वजीव ज्ञानक्रियामें आदर नहीं करेगे ॥ और साधुओंकाभी शिथिलाचार होगा। और जो दृढव्रत धारणेवाले धर्मकार्य में शिक्षा देवेंगे उन्होंका हास्य करेगा ॥ जैसे ग्रामीणलोग नगरके लोगोंका हास्य 81 करे है वैसा करेगा यह दूसरे खनेका फल ॥२ तथा ज्ञानक्रियामें भक्तिमन्त, जैनधर्मकी उन्नतिकरनेवाले सात क्षेत्रमें धन खर्चनेवाले गुणवन्तसाधुओंके भक्त ऐसे क्षीरवृक्षके सदृश श्रावकोंको वेषधारी, अहंकारी गुण
RECENGALORCAMERA
For Private and Personal Use Only