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चा. व्या. ६
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अथ दीपमालिकाव्याख्यान लिखते हैं ॥
श्रीवामेयं जिनं नत्वा, स्तम्भनकपुरसंस्थितम् । दीपालीकायाः व्याख्यानं, लिख्यते लोकभाषया ॥१॥ श्रीस्तम्भना पार्श्वनाथस्वामीको नमस्कार करके दिवालीका व्याख्यान लोकभाषासे लिखता हूं ॥
इस जम्बूद्वीपका भरतक्षेत्रका मध्यखंड में मालवनामका देश है | उसमें अलकापुरीके तुल्य उज्जैनीनाम| की नगरीहोतीभई | उस नगरीमें सूर्य के जैसा तेजखी राजगुणसहित ॥ संप्रति नामका राजा होताभया । वाद एकदा प्रस्ताव में उज्जैनी नगरीमें छत्तीसगुणों करके विराजमान आर्यसुस्थित ( सुहस्ति ) सूरिनामके आचार्य ग्रामानुग्राम विचरते ऐसे जीवितखामी श्रीमहावीरखामीकी प्रतिमाके दर्शन केलिये आये ॥ रथयात्राका उत्सव में | आचार्य साथमेंथे संप्रति राजाने देखा ॥ जातिःस्मरण पाया ॥ बाद राजा आचार्य के पासमें आके बहुतभक्तिपूर्वक श्रीगुरूको नमस्कार करके हाथजोडके आचार्य से बोला ॥ हे महाराज मेरेको जानो हो ऐसा पूंछनेसे गुरुवोले हेराजन् तुमको कौन नहींजाने || बाद राजा और बोला । हे ज्ञानसमुद्र ज्ञानदृष्टिसे आप मुझे पहचानते हैं या नहीं ॥ तव आचार्य उपयोग देके वोलेकि हे नरेन्द्र तैं पूर्वभव में संवेगवान हमारा शिष्य था ॥ उत्तमदीक्षा के | प्रभावसे राजा भया है | यह सम्पदा पाई है | ऐसा गुरूकावचनसुनके आचार्यपर बहुतप्रीतिः जिसकी
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