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अवाहिका व्या०
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॥२४॥
बांधके रक्खूगा मेरा पिता कैसे जावेगा ऐसे कहके सूतके तंतुओसे अंदर सोताहुबा पिताका पग बांधा मुखसे ऐसा आद्रकुमार बोला हे मातः धीरी होवो मैंने ऐसा बांधा है कि कभी नहीं जा सकेगा आर्द्रकुमारभी उसबालककावचनसमूह- कथा सुनकर पुत्रके स्नेहसे ऐसा बोला हे पुत्र जितने तंतुओंसे मेरपेग बांधे हैं उतने वर्ष औरभी घरमें रहूंगा वादगिनके बंधन तोड़े बारह बंधन भये बारह वर्षतक घरमें रहे ॥ बाद प्रतिज्ञा पूर्ण भयोके अनन्तर आर्द्रकुमार वैराग्यसे पूर्ण मन जिसका रात्रिके पश्चिम प्रहरमें ऐसा विचारता भया मैंने पूर्वभवमें मनसेही व्रतभंगकिया उससे मैं अनार्यपना पायाहूं इसभवमें व्रतलेके छोडदिया अब क्यागति मेरी होगी। अवी भी दीक्षा लेके तपसे आत्माको शुद्धकरूं ऐसा विचारके प्रभातमें श्रीमती और अपने पुत्रको बुलाके उन्होंकी आज्ञालेके साधुका वेष अंगीकार ६ कर घरसे निकला बाद राजग्रहनगर जाता हुआ बीचमें चोरीसे आजीवकाकर्ताहुआ पांचसै अपने सामन्तोको है देखा उन्होंने पहचानके भक्तिसे बन्दनाकिया आर्द्रकुमार मुनिने उन्होसे कहा तुमने महापापकाकारण
यह वृत्ति क्या अंगीकारकरी उन्होंने कहा हे प्रभो हमको ठगके जब तुम चले आये तबसे लजासे राजाको मुख नहीं दिखाया तुम्हारी गवेषणमें लगेहुये पृथ्वीपर परिभ्रमण करते हुये चोरीकी वृत्तिसे निर्वाहकर्तेहैं तब
॥ २४ ॥ टू मुनिबोले तुमने अयुक्तवृत्तिअंगीकारकरी कोई पुण्ययोगसे यह मनुष्यभवपाके वर्ग अपवर्गका देनेवाला धर्मही
सेवना और हिंसा असत्य, चौरी, अब्रह्म, परिग्रहका त्यागकरना हेभद्रो तुम खामीके भक्तहो मैं पहलेकेजैसा है
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