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SASARDARRORS RESS
भिक्षादे जिससे सबोंका दर्शनहोवेगा उसके बाद श्रीमती भी निरंतर उसीतरह किया मुनिका लक्षणदेखनेकी इच्छावाली मुनियोंके चर्णो में वन्दनाकरे बाद वारहवें वर्ष में वह महामुनिः दिशाभूलगया वसंतपुरपत्तनमे आया। उस मुनिका लक्षण देखनेसे श्रीमतीने पहिचाना तब श्रीमती उस ऋषिसेवोली हेनाथ उसदेवकुलमें मैंनेजो | वराथा वह मेरा वर तुमही हों मेरे भाग्यसेही यहां आयेहोमैं मुग्धाहूं मेरेको छोड़कर कहां जाओगा जब तुम चले गयेथे उसदिनसे लेके मेरे महादुःखसे इतना समयगया इसलिये प्रसन्न होके मेरेको अंगीकारकरो ॥ ऐसेरहते भी जो मेरेको नहीं पाणिग्रहणकरो तो मैं अग्निमें प्रवेशकरके तुमको स्त्री हत्याका पाप देउंगी ॥ तब औरभी उसका पिता प्रमुख महाजनोने विवाहके वास्ते प्रार्थना करी तब उससाधुने व्रतारंभके समय देवीने मनाकिया । था वह वचनका स्मरण किया वाद भोग्यकर्मकाउदय वही एक कर्जा उसको छुड़ानेके वास्ते श्रीमतीको पाणिग्रहण-18/ करी वाद श्रीमतीके साथ बहुतकालतक भोगभोगवता उसके क्रमसे पुत्रहुआ वह क्रमसे बड़ाहोताहुआ राजसुक-1 सदृशबोलनेलगा तव आर्द्रकुमार हर्षितभया श्रीमतीसे बोला अब तेरे पुत्रका सहायहो मैं दीक्षालेउं तब बुद्धिनिधि । श्रीमती पुत्रको अवसर बतलानेकेलिये सूत कातने वैठी तब सूत काततीहुई अपनी माताको देखकर बालक बोला हे अंब वह पामर लोगके योग्य क्या कर्म आरंभ किया श्रीमती बोली हे पुत्र तेरा पिता तुझको और मुझको छोड़कर दीक्षालेगा, तेरापिता जानेसे पतिहीन मेरेको इसचर्खेकाही शरणाहैं तब बालक बालकपनेसे मनमनाक्षरोंसे बोला मैं
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