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लिये १ दिन अकस्मात् आके आत्मनिंदाकरतीहुईदेखके संतुष्टमानहुवा पटरानीकरी औरोंकाअपमान किया।"
इसप्रकारसे धर्मार्थियों को आत्मनिंदाकरनी ॥ 5 और भी चौमासापर्वआराधनेकी इच्छावाले भव्यात्मावोंको इसदिनमें अपने २ अतिचारआलोवना गुरुवादिकके सामने मिच्छामिदुक्कडंदेना वहां साधुवोंके चरणसित्तरी (७०) करणसित्तरी (७०) मिलने से एकसोचालीस १४० अतिचारहोतेहे सो नाममात्रलिखतेहे व्रत ५ श्रमणधर्म १० संजम १७ वैयावच्च १० ब्रह्मगुप्ति ९ |ज्ञानादि ३ तप १२ कपायनिग्रह ४ ये ७० भेद चरणकेहें.
पिंडविशुद्धि ४ समिति ५ भावना १२ प्रतिमा १२ इंद्रियनिरोध ५ पडिलेहण २५ गुप्ति ३ अभिग्रह ४ ये ७० करणके भेदहे इनमें जो अतिचारहुवेहोय उसका मिच्छामिदुक्कडं, श्रावकोंकेतो १२४ अतिचार होतेहे सो लिखतेहे गाथा
पणसंलेहण (५) पन्नरसकम्म (१५) नाणाइअट्टपत्तेयं २४।। बारसतव (१२) विरयतिगं (३) पणसम्म (५) वयाणपत्तेयं (६०)॥१॥ व्याख्या-संलेखनाके ५ अतिचार कहतेहे, (१) यहां इसतपके प्रभावसे मनुष्यराजादिकहोऊं यह (इहलो
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चा. व्या. ३
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