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अट्टाहिका व्या०
पर्युषणाधिकार
॥ २०॥
अर्थ-तीर्थकरका दर्शन करनेसे पापका नाश होताहे और नमस्कार यास्तुति करनेसे वांछितके देनेवालेहे पूजनेसे लक्ष्मीको पूर्ण करनेवालेहे इसवास्ते तीर्थकर साक्षात् कल्पवृक्ष हे ॥१॥ और भी तीर्थंकरके दर्शनसेहि बहोतसे भव्योंके बोधबीजकी प्राप्तिहोवेहै आर्द्रकुमरके जैसा वह वृत्तांत यह हे-जैसे इस भरतक्षेत्रमें समुद्रके किनारे |आर्द्रकनामका यवनदेसहै उसमें आर्द्रकपुरनामका नगरहे वहां आर्द्रकनामका राजाभया उसके आर्द्रका नामकी पटरानीथी उन्के आर्द्रनामका पुत्रथा वह क्रमसे योवनावस्थाको प्राप्तभया खेच्छासे मनोज्ञभोगभोगवता सुखसे रहे उसआईक राजाके श्रेणिक राजाके साथ परंपरागत परमप्रीतिथी एकदा श्रेणिकराजा बहुत भेटणा तयार करके आर्द्रक राजाके पास अपना मंत्रवी भेजा वो गंत्रवी भी कितनेहि दिनोंसे आईकनगर गया आईक राजाने बहुत आदरके साथ संभाषणकरके उसके दिये हुवे भेटणेको ग्रहण किया और पूछा मेराभाई श्रेणिक राजाके कुशलहे ! तब मंत्रवीने भी वहांके संपूर्ण कुशलका समाचार कहनेकर राजाकेमनमें परमआनंदसंपादन किया उस
अवसरमें आर्द्रकुमरने राजासे पूछा अहोपिताजी! कोण वह श्रेणिकहे जिसके साथ आपकी ऐसी प्रीती ४ावर्तेहै तब राजा बोले वह मगधदेसका राजाहै उसमगधेशश्रेणिक राजाके और मेरेकुलमें परंपरागत प्रीतीहे ऐसा पिताका वचन सुनको आर्द्रकुमर भी मंत्रवीसे बोला अहो मंत्रवी ! तुम्हारे राजाके सम्पूर्णगुणयुक्त कोई| पुत्र भी है जिसके साथ में भी मैत्री करनेकी मनसा करूं मंत्रवी बोला श्रेणिकराजाके अभयकुमारनामका
ALSCRECRACACACCIA
AGRA
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