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अद्राहिका व्या०
कथा
॥२२॥
* ASSUSTICIAS
साथ मैत्रीहे यहांका कोई वहां गया नहि ओर वहांका यहां आया नहि, तब पिताकी आज्ञासे बंधाहुवा आद्रकुमार अभयकुमरसे मिलनेकी इच्छाहे जिसको ऐसा आर्द्रकुमार मनसे रहा नहि कायासेगयानहि और आशनमें 81 बेठने में सोने में चलनेमें और कार्यमें अभयकुमारआश्रित दिशाको देखै पासमे रहनेवालोंसेभी पूछे कैसा मगधदेशहे| केसा राजाहे वहां जानेका कोणसामार्गहे. उसअवसर राजाने विचाराकी कभीने कभी यह मेरा कुमर मुझे | विना पूछेही अभयकुमरके पास जावेगा वास्ते जतनकरनाचाहिये बाद राजा (५००) पांचसै सामंतोंको एसी आज्ञाकीवी कि यह कुमर कहिं जावे तो तुमको रक्षा करनी जानेनहिं देना तब पांचसै (५००) सामंत देहकीछायाकेजैसे कुमरके पासहि हरवक्त रहनेलगे और कुमर भी अपने आत्माको बंधाहुवा जानके अभय 8 कुमरके पासजाना ऐसा चाहताहुवा निरंतर घोडा फिरानासरुकीया 4 सामंतभी घोडोंपर सवारहोके अंगरक्षाके
वास्ते साथ#हि रहे कुमर भी घोडा फिराताहुवा उन्होंसे कुछ आगेतक जाताहे और पीछा आताहे आप इसप्रकाPारसे उन्होंको विश्वास उत्पन्नकरके अन्यदा आर्द्रकुमर अपने प्रतितीवाले पुरुषोंके पास समुद्र में जहाज तैयारकराके
रत्नादिकसे भराया और जिनप्रतिमाभी उसमे रखवाई और आपघोडे खेलानेके लिये चला घोडा फिराताहुवा ॥२२॥ दूरजाके जहाजमें बेठके आर्यदेशगया बाद जहाजसे उतरके प्रतिमा अभयकुमारकों भेजके साधुकावेष ग्रहणकीया और जितने सामाईकउचरनासरुकरताहे इतनेमेंहि आकासमें देवता बोली अहो कुमर ? यद्यपितुम सात्विकहो
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