Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 44
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अट्ठाहिका व्या० ॥ २१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पेटीमें धरके उन्होंके आगे सम्पूर्ण धूपादिक देवपूजाका सामान रक्खा बाद पटी बंध करके तालादेके अभयकुमारने उसपर अपनीछापलगाके कितनेक दिनके बाद श्रेणिकराजाने आर्द्रकराजाके पुरुषको प्रियआलापपूर्वक बहुत भेटना देके भेजा तव अभयकुमारने भी वा पेटी देके अमृत तुल्य वचनोंसे एसा बोला यह पेटी आर्द्रकुमरको देनी और उस मेरे भाईको ऐसा वचन कहना कि तुमको यह पेटी एकांत बेठके खोलना इसकी अंदरकी वस्तु आपहिको देखनी और कीसीको नहि दिखाना बाद अभयकुमारका वचन अंगीकार करके वह पुरुष अपने नगरजाके भेटना स्वामीको और कुमरको दिया और आर्द्रकुमारकों अभयकुमारका शंदेसा कहा बाद आर्द्रकुमार एकांत में बैठके उस पेटीको उघाडके अंधेरेमें उद्योत करनेवाली श्रीरिषभदेवखामीकी प्रतिमाको देखके विचारने लगा अहो ! क्या यह उत्तमदेहिका आभरणहे तो क्या मस्तकपर पहराजाता है या कंठमें हृदयमें या और कँहि पहराजाताहे ऐसा विचारकर उसीतरहसे कीया परंतु कहिभीठहरा नहि तव विचारकरने लगाकि मेनें पहले ऐसा कँहि देखाहे ऐसा मालुम होताहे परंतु याद नहि आता है कहाँ देखाहे इसप्रकार से अत्यंत विचार करतेहुवे आर्द्रकुमारको जातीस्मरण जनित मूर्छा उत्पन्न भई तदनंतर उत्पन्नहुवा हे जातीस्मरणजिसको ऐसा कुमर चेतनापाके आपही अपने पूर्वभवकी कथा विचारने लगा - इस भवसे ( ३ ) तीजे भवमें मगधदेस में वर्शतपुरनगर में सामजीकनामका कुटुंबी था मेरे बंधुमती नामकी स्त्री थी एकदा सुस्थित आचार्य के पास में धर्म सुना स्त्रीसहित प्रतिबोध पाया गृहस्थ For Private and Personal Use Only आद्रकुमार कथा ॥ २१ ॥

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