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पुत्रहे वह सर्वकलानिधान सर्ववुद्धिका समुद्र ५००मंत्रवीयोंका खामी महादयावान महादातार अत्यंत विचक्षण निर्भय धर्मका जाणनेवाला कृतज्ञहे जादा कहनेकर क्या ऐसे जगतमे कोईभी गुण नहि हे जोकी अभयकुमरमें नहि हों. इस प्रकारका मंत्रवीके मुहसे सुनके पिताकी आज्ञा लेके मंत्रबीसे बोला. मेरेकुं पूछे सिवाय देश जाना नहि और देश जाते हुवे अभयकुमारको स्नेह वृक्षाके बीजतुल्य मेरा वचन सुनना. बाद मंत्रवीभी आर्द्रकुमारका वचन सुनके |अंगिकारकरके राजाने विसर्जन कीया छडीदारके बताए हुवे स्थानपर गया-अथ अन्यदा आईकराजा प्रधान है मोती वगेरह भेटना देके अपने मंत्रवीको श्रेणिक राजाके मंत्रवीके साथ राजग्रहभेजा तब आर्द्रकुमारने भी अभय
कुमारके वास्ते मोती मूंगा वगेरह प्रधान वस्तुका भेटना मंत्रवीके साथ भेजा तब वहभी राजग्रह पहोचा श्रेणिक राजाकुं अभयकुमारको भेटना दिया और मंत्रीने अभय कुमारसे कहा कि आपके साथ आर्द्रकुमार मैत्रीकरना चाहताहै तब जिनशासनमें कुशल ऐसे अभयकुमारने विचारा कि निश्चय वह राजकुमर विराधितश्रमणपनेसे अनार्यदेसमें उत्पन्नहुवाहे परंतु वह राजपुत्र महापुरुष नियमसे आशन्नभव्यहे तिसकारणसे अभव्य दूरभव्य 8 की तो मेरे साथ मित्राईकरनेकी इच्छा नहि होतीहै इसलिये कोइ तरहसे उसको धर्ममार्गमें प्रवर्तावु वहां यह उपायहे भेटणे के छलसे ! जो वहां जिन प्रतिमाभेजें तो उनके दर्शनसे जातीस्मरणज्ञानउत्पन्नहोवे और मेरी इष्टसिद्धी होवे ऐसा उपाय विचारके छत्र चामर सिंहासनादिकसे विराजित रत्नमई श्रीरिषभदेवखामीकी प्रतिमा
HOGANISASI
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