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उसकावेचना और शस्त्रादिकको वेचना (विषवाणिज्य) (१०) द्विपदचतुस्पदादिकावेचना (केशवाणिज्य) (११) तिल सेलडी वगेरहका कोहचलवाना (यंत्रकर्म) (१२) वृषभादिकको अंगहीनकरना वृषणच्छेद करना कान६ वगेरहकाटना (निर्लान्छनकर्म ) (१३) क्षेत्रवगेरहमें अग्नि लगाना या जंगलजलादेना ( दवदानकर्म ) (१४)। है गहुवंगरेहबोहने के लिये सरोवर आदिका सुकाना (सरदहतालावसोपनियाकर्म) (१५) कुशीलिये दास दासियोंको
पोषके भाडालेके आजीविकाकरना ( असतीपोपनकर्म ) ये १५ कर्मादान के अतिचार कहे. | अब ज्ञानके ८ अतिचारकहतेहै जैसे अकालवेलामें अथवा मनाकियेहुएदिनोंमें श्रुतका अध्ययनकरना १ गुरु और ज्ञानकाउपकरण और पुस्तकादिकों के पाँवआदिकासंघटाकरके अविनयकरना २ तथा इन्होंका बहुमान 5
नहिकरना ३ उपधान योगादिविना श्रुतअध्ययनकरना ४ जिसके पासमें श्रुत अध्ययन (सूत्रपढा होवे ) है कीया उसको गुरु नहि कहना ५ देववंदन प्रतिक्रमणादिकमें अशुद्धअक्षरोंका पढना ६ वहाँहि अशुद्ध अर्थका
पढना ७ देववंदनादिक में सूत्रअर्थका अशुद्धपढना ८ ये ज्ञानके ८ अतिचारकहे, अब दर्शनके ८ अतिचारकहतेहैं| ६ जैसे देवगुरू धर्मकेविषयमें आशंकाकरना १ सर्वमतअच्छे हैं ऐसाविचारकरना २ धर्मकेफलमें संदेहकरना ३
मिथ्यादृष्टियों का महत्वदेखके उसपरतीवरागकरना ४ साध्वादिकों के गुणोंकी प्रशंसा नहि करना ५ नयेप्रतिबोधे ।
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