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निपुण होके वेनातट नगरमें आया वहां राजाको कलादिखानेके लिये आप वांस पर चढ़के नाचता हुआ नटपुत्री वांसके पास में खड़ी भई गाती थी तब उस नटपुत्री को देखके राजा चलचित्त होके विचारने लगा कि जो यह इलापुत्र वांससे पडके मरजाय तो इस कन्याका में पाणिग्रहण करूं बाद इलापुत्र सब कला देखाय के वांससे उतरके दानलेने की इच्छासे राजाके आगे खड़ा रहा तब राजा वोले व्यग्रता करके मैने नाटक नही देखा | इसलिये और भी नाटक करो तब इलापुत्रने धनकी वांछासे और भी नाटक किया परन्तु राजा तो उसका | मरना चाहता हुआ और भी वैसाही कहा तब तीसरी वक्त वसपर चढ़के नाटक करता भया उस अवसर में एक श्रीमन्त सेटके घर में एक साधु आहारके वास्ते गया तब सर्व अलङ्कारोंसे शोभित अत्यन्त सुन्दर सरीर है जिसका ऐसी सेटकी स्त्री जल्दीसे उठके आनन्दसहित बन्दना करके मोदकोंसे थालभरके साधुकों प्रतिलाभे साधुभी अधोदृष्टिजिसकी ऐसा इत्थं इत्थं याने यहहि दान देनेका विधि है ऐसा शब्द उच्चारण करते हुए दान लेते है यह स्वरूप वांसपर चढ़े हुए इलापुत्रने देखा तब यह आप नटवीमें लगा हुआ है चित्त ऐसा उन्होंका | निर्विकार भाव देखनेसे जल्दी ही वैराग्य पाया अनित्यादिभावना भावता हुआं केवल ज्ञान प्राप्त भया देवोंने वहां महोत्सव किया । वंशही सिंहासन होगया तब वह स्वरूप देखके राजादिक भी प्रतिबोध पाए इतने कहनेकर परिज्ञापर इलापुत्रका दृष्टान्त कहा ॥ ७ ॥
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