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चातु मासिक
॥ ८ ॥
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अब परिहरणीय वस्तु त्यागमें तेतली पुत्रका दृष्टान्त कहते हैं। जैसे "तेतली पुरनगर में कनककेतुनामका | राजा था वह राज्यके लोभसे जातमात्र पुत्रोंका विनाश करता था अर्थात् विकलांग करे उस राजाके तेतली पुत्र नामका प्रधान था । उसके पोटिलानामकी स्त्री थी वा पहले तो प्रधानको वल्लभ थी परन्तु पीछे अप्रिय | होगई । एक दिन आहारके वास्ते उसके घरमें एक साध्वी आई मन्त्रीकी स्त्रीने नमस्कार करके भर्तारको वशी करनेका उपाय पूछा, तब साध्वी बोली कि धर्मसेवनकर इससे सर्व वांछित अर्थकी सिद्धि होवे है तब मन्त्रवी कीस्त्री संसारसे विरक्त हुई दीक्षा लेनेकी वांछासे पतिको पूछा मन्त्रवी बोला कि दीक्षा ग्रहण करो परन्तु जो तुम देवपद पावे तो मुझेभी प्रतिबोध देना उसने भी पतिका वचन अङ्गीकार किया, बाद वा पोटिला स्त्री दीक्षा लेके आयुक्षय से समाधिसे मरके देवपद प्राप्त भई । अब मंत्रवीने एक राजा का पुत्र जातमात्र ही छानालेके अपने घरमें हि रखा था वह कुमर बड़ा हुआ तब कनककेतु राजा परलोक जानेसे मंत्रीने उस कनक - ध्वज कुमरको राज्य में स्थापन किया राजाने सर्व कार्य मावीको सौंपा तब मन्त्रवी रातदिन राज्य कार्य में मन हुआ थका कभी भी धर्मकार्य नहीं करता था उस अवसर में देवभव प्राप्तभई पोटिलाने मन्त्रवीका वह स्वरूप | देखके प्रतिबोधनेके लिये राजादिक सर्वलोगोंको विरुद्ध किये तब राजसभा में गए हुए मत्रीने कहींभी आदर नहीं पाने कर अपमानपाया हुआ जल्दी घर आके अपने कुमरणकी शङ्कासे अपने हाथहीसे बहुत मरने
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व्याख्यानम्.
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