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जीवन चरित्रकी आवश्यकता ।
कोई न कोई देहमें अवश्य रहना पड़ता है। कर्म सहित जीवोंका मरण एक नये जन्मके लिये होता है । जो कुछ भी हो यह निश्चय है कि इस शरीरका सम्बन्ध किसीका भी अमर नहीं रह सक्ता । ऐसी दशा में प्रवीण मनुष्य मानव शरीरमें रहते हुए इसका ऐसा उपयोग करते हैं जिससे न कि यह जन्म ही सुन्दर, सुखदायी
और हितकारी होता है, किन्तु पर जन्ममें भी शुभ शरीर व शुभ सम्बन्ध पानेका दृढ़ पुण्य उनके साथ हो जाता है। ____ सर्व प्राणधारियोंमें मानव सर्वसे श्रेष्ठ है। इसको मनकी शक्तिका अपूर्व लाभ है। मनकेद्वारा यह बड़े २ आश्चर्ययुक्त तरकीबोंको सोच सक्ता है। आज कल जो हवाई जहाज़, बेतारका तार आदि नाना यंत्र निकल पड़े हैं ये सब मनका ही चमत्कार है। मनके द्वारा यह जगत क्या हैइसमें कौन२ पदार्थ हैं ? उनमें मुझे हितकारी क्या व अहितकारी क्या ? यह सब ज्ञान होता है। सूक्ष्मसे सूक्ष्म तत्व जो एक शुद्ध आत्माका अनुभव है उस तककी पहुंच इस मानवको हो जाती है और यह उस तत्त्वका सेवी होता हुआ जो आनन्द लाभ करता है वह वचन अगोचर है, केवल अनुभवगम्य है। यही अनुभव आत्माके मैलको धीरे२ धोता है, यहां तक कि यही आत्माको शुद्ध कर देता है। ____ मानवोंके लिये धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ हैं। मोक्ष धर्मका अंतिम फल है। अर्थ और कामका भी अंतरंग हेतु पुण्यरूप धर्म है। धर्मसाधन बिना तीनोंका लाभ नहीं, इससे धर्मका सेवन सबसे ज़रूरी है। ___ धर्म वास्तवमें आत्माके उस परिणामको कहते हैं जो शुद्ध
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