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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। जघन्यका कथन करा तिस आदि शब्दकों प्रकारार्थ होनेसें उष्ट नहीं है. यह जघन्य चैत्यवंदना ॥१॥
तथा दंझक अरिहंतचेश्याणं इत्यादि. स्तुति जो है सो प्रसिह है तिन दोनोका युगल जोडा अथवा दमकस्तुतिही युगल दमकस्तुतियुगल इहां प्राकृत नाषा होने करके प्रथम विनक्तिका एक वचन वा तृतीय विनक्तिके एक वचनका लोप जानना. यह मध्यमपातक्रियाके होनेसें मध्यमा चैत्यवंदना. _ यह व्याख्यान इस कल्पनाष्यकी गाथाकों लेके क रते हैं. तद्यथा निस्सकडमनिस्सकडे,वाविचेएसबहिं घुई तिमि ॥ वेलंव चेश्याणि, विणा एक क्विया वा वि ॥ १ ॥ जिस हेतुसे दमकके अवसानमें एक स्तुति देते हैं, ऐसे दमक स्तुतिरूप युगल होता है, अन्य ऐसें कहते है शकस्तवादि पांच दंझक करके, और स्तु ति युगल करके, सिद्धांत जाषा करके, स्तुति चार रू ढ करके, अर्थात् दंमक पांच और स्तुति चार करके जो चैत्यवंदना करे सो मध्यम चैत्यवंदना जाननी ॥२॥
तथा संपूर्ण परिपूर्णा सो प्रसिह दंझक पांच क रके,और स्तुति तीन करके,और प्रणिधान पाठ कर के, होती है चोथी थू अर्वाचीन है,इसी वास्ते य
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