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चतुर्थ स्तुति निर्णयः ।
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ताका कायोत्सर्ग करणा, केश्क चातुर्मासीमेंनी नव नदेवताका कायोत्सर्ग करते है.
बृहनाष्यमेंजी कहा की कायोत्सर्ग पारके, औौ र पंचपरमेष्ठिकों नमस्कार करके, “वेयावञ्चनराणं ० " वैयावृत्त्यादि करणेवाले यह देवताकी थुई कहे.
तथा चौदह चुंवालीस १४४४ प्रकरणके कर्त्ता श्री हरिजसूरिजीनेंजी ललितविस्तरा ग्रंथमें कहा है कि चौथी चुइ वैयावृत्य करनेवाले देवतायोंकी कहनी इस वास्ते प्रार्थना करणेमें कोइनी युक्ति नहीं है. इति सेंताजीशमी ४७ गाथाका अर्थ है, यह श्रावककें यावश्यकके पाठकी टीका है-ब जो कोई इसकों न माने तिसकों दीर्घ संसारिके शिवाय और क्या कहियें ?
तथा विधिप्रपाथका पाठ लिखते है. पुवोलिंगि या पडिक्कमण सामायारी पुरा एसा || साव गुरुहि समं इक्को वा जावंति चेश्याइं तिगहा डुग थुत्त पणि दाraj चेश्याई वंदित्तु चनराइ खमासमणेहिं था यरियाई वंदिय जूनि दिय सिरो सबस्स वि देवसिय चा इदंमगेण लयलाइयार मिनुक्कडं दार्ज उहिय सा माझ्य सुतं नणितुं इष्वामि वाइनं काउस्सग्गमिच्चाइ
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