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१४६ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः । करणेके लीये यति साधुनी क्षेत्रदेवता आदिकका कायोत्सर्ग करते है. आदिशब्दसें नवनदेवतादिकका ग्रहण करना. इसवास्ते नि केवल श्रावकोनेही इनो का कायोत्सर्ग करणा ऐसा नही समजना. अपितु साधुनो करते है. यह अपिशब्दका अर्थ है.क्योंकी पूर्वोक्त कायोत्सर्ग करणे यह कथन श्रुतकेवली श्रीनबाहु स्वामीने कहे है. इति गाथार्थः ॥ सोय कहते है. ___ चानम्मासि इत्यादि गाथा १००२ की व्याख्या ॥ चातुर्मासीमें, सांवत्सरीमें, देवदेवताका कायोत्सर्ग करणा, और पादी में जवनदेवताका कायोत्सर्ग क रणा, एकैक आचार्य चातुर्मासीमेंनी नवनदेवताका कायोत्सर्ग करते है. इति गाथार्थः॥
पूर्वपदः-ननु इति प्रश्ने. जेकर चातुर्मास्यादिकमें देवदेवादिकका कायोत्सर्ग करना श्रीजवादुस्वामी जीने कहा है तो फेर क्यों कर अब संप्रतिकालमें नित्य कायोत्सर्ग करते हो. इस प्रश्नका उत्तर ग्रंथ कारही देते है.
संप इत्यादि गाथा १००३ व्याख्या ॥ सां प्रत कालमें नित्य दिनप्रति जो देवदेवतादिकका
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