Book Title: Chaturthstuti Nirnay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 170
________________ १ ४८ चतुर्थस्तुति निर्णयः । र्गनिवारक होनेसें, और श्रीजिनमंदिरकी रक्षा क रनेसें, देवजवनकी पालना करनेसें, नित्यप्रति इन देवतायोंकी पूजा करनी चाहियें. यादिशन्दसेंदि न प्रतिदिन तिन देवतायोंका कायोत्सर्ग करना चाहि यें. किनकों करना चाहियें ? धर्मिजनोकों करना चा हियें. यहां निप्राय यह हैकी जेकर मोहके यर्थे इन पूर्वोक्त देवतायों की पूजादि करे जबतो युक्त है. परंतु विघ्न निवारणादिकके निमित्त करे तो कुंबनी प्रयुक्त नहीं है. उचित प्रवृत्तिरूप होनेसें पूजा, का योत्सर्ग करना युक्तही है. किंच शब्द प्रयुचयार्थ में है ॥ इति गाथार्थः ॥ ॥ शेष कहने योग्य जो रहा है सोइ कह ते है | मित्त गुण इत्यादि १००५ गाथाकी व्या ख्या ॥ मिथ्यात्वगुणसहित प्रथम गुणस्थानमें वर्त्त ने वाले एैसे नरेश्वर जो राजादिकों है तिनकों जो पूजा नमस्कारादिक करते है सो तो इस लोक के प्रयोजन वास्ते करते है. परंतु सम्यक्त्वसहित स म्यकदृष्टि ब्रह्मांत्यादि देवतांकी पूजा, नमस्कार कायोत्सर्गादि जो करते है, सो कु मूढ अज्ञानी नही करते है. इति गाथार्थः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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