Book Title: Chaturthstuti Nirnay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

Previous | Next

Page 198
________________ ___ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। अथ निकट उपकारी गणिक्य श्रीमन्मणिविजयजी, महराजकी किंचित् गुरुप्रशस्ति लिखते है. // अनुष्टुब् वृत्तम् // तपागचे जगईये, जझिरे बुदिशालिनः॥ है श्रीमन्मणिविजयाख्या, गुरवः संयमे रताः॥१॥ यस्य धर्मोपदेशेन, निर्मलेन कति जनाः॥ / सम्यक्त्वं लेनिरे साधु, धर्म च लेनिरे कति // 2 // तेषां पट्टांबरे चंश, नरिशिष्यप्रशिष्यकाः॥ / श्रीमहदिविजयाख्या, बनूवुर्बुदिसागराः // 3 // निःसंगा निर्ममाः दांता, ये च पांचालनीति // ढुंढकारख्यं मतं हित्वा,जाताः संवेगनाजनम्॥४॥ तलिष्येण मयानंदविजयेन सविस्तरः // ग्रंथोऽयं गुफितः सम्यक्, चतुर्थस्तुतिनिर्णयः॥५॥ ए बुद्धिमांद्यवशात् किंचित्, यदशुक्ष्मलेखि तत् // णाका नवर्य संपरित्यज्य, शोधयध्वं मनीषिणः // 6 // होवे. पैसा कथनोनिधि-श्रीमद्-आत्मारामजी(आ नबाद स्वामीने राजविरचितः चतुर्थस्तुतिनिर्णयः॥ आयरिए परंपराए, समाप्तमिदम् // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 196 197 198