Book Title: Chaturthstuti Nirnay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 196
________________ १७४ चतुर्थस्तुति निर्णयः । स्थामें श्रीधनपाल पंमितका सगा भाई, संवत् १० २० के लगनगमें श्रीशोजनाचार्य महामुनि दूए तिनोने श्रीबप्पनह सूरिजीक । तरें चौवीस चोक बां नवे युश्यां रची है तिनमेंजी चौवीशे चोथी घुइयोंमें अनुक्रमसें श्रुतदेवता, मानसी, वज्रश्रृंखला, रोहि पी, काली, गंधारी, महामानसी, वज्रांकुशी, ज्वल नायुधा, मानवी, महाकाली, श्रीशांतिदेवी, रोहिणी, अच्युता, प्रज्ञप्ति, ब्रह्मशांति यद, पुरुषदत्ता, चक्रधरा, कपर्दिय, गौरी, काली, अंबा, वैरोट्या, अंबिका, इ नकी स्तवना करी है. अब नव्य जीवोंकूं विचारणा चाहियें की जब श्री जिनेश्वरसूरिके उपदेशसें तथा पूर्वाचार्योंकी परंपराय सें, पूर्वाचार्यसम्मत चौथी थुइ है तो तिस्का निषेध करणा यह जिनाज्ञाधारक प्रामाणिक पुरुषका लक्ष ए नही है. क्योंकी जो पुरुष पूर्वाचार्योंकी व्याचर पाका छेद करे सो जमालिकी तरें नाशकों प्राप्त होवे. पैसा कथन श्रीसूयगडांग सूत्रकी निर्युक्तिमें श्री बाहु स्वामीनें करा है. सो पाठ यहां लिखतें है । याय रिए परंपराए, यागयं जो बेय बुद्धिए ॥ कोइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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