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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १७५ वोडेय वाइ, जमालिनासं स नासे ॥ १॥ अर्थःआचार्योंकी परंपरायसें जो आचरणा चली आती सोवे तिस्को उबेद करने अर्थात् न माननेकी जो बु ६ि करे, सो जमालिकी तरें नाशकों प्राप्त होवे. ___ तथा श्रीवाणांगकी टीकामें श्रुतज्ञानदिके सात अंग कहे है. सूत्र, नियुक्ति, जाष्य, चूर्मि, वृत्ति, परं
रा, अनुनव, इनकों जो कोइ बेदे सों दूरनव्य अर्था { अनंतसंसारी है, जैसा कथन पूर्वपुरुषोंने करा है.
इस वास्ते रत्नविजयजी अरु धन विजयजी जेकर जैनशैली पाकर आपना आत्मोचार करणेकी जि झासा रखनेवाले होवेगे तो मेरेकों हितेनु जानकर
और क्वचित् कटुक शब्दके लेख देखके उनकेपर हित बदिलाके किंवा जेकर बहते मानके अधीन रहा होवें तो मेरेकों माफी बदीस करके मित्र नावसे इस पूर्वी क्त सर्व लेखकों बांच कर शिष्ट पुरुषोंकी चाल चलके धर्मरूपवृक्षकों नन्मूलन करनेवाला पैसा तीन शत का कदाग्रहको बोडके, किसी संयमि गुरुवार उपसंपत् लेके शुक्ष्प्ररूपक हो कर मिकों पावन करेंगे तो इन दोनोकाम नावेगा यहा हमारा आशीर्वाद है
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