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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १६७ दोकों फिरायके तिस जगे दूसरे वाक्य लिखना यह काम करणेसे जो पाप लगे तिस्से जास्ति पाप फेर दूसरे कौनसे काम करनेसे लगता होवेगा? यह काम करणमें कोश्नी नवनीरू पुरुष आपनी सम्मतितो नहीही देवेगा, परंतु खरा अंतःकरणपूर्वक पश्चात्ताप करके इन दोनोकों इस कामसे दूर रहेने वास्ते अव श्य सत्य उपदेश करणेमें क्योंकर तत्पर न रहेगा! अ पितु अवश्य रहेगाही. श्रीजिनेश्वर नगवान्के वचन नडापन करना यह कुन सहेज बात नही है, इस्से वो उबापक जीव अनंत संसारी बन जाता है, तो फेर जिसके हाथमें सब दर्शनोमें शिरोमणीनूत श्री जैनधर्मरूप चिंतामणि रत्न प्राप्त दूवा तिस्कों वोअप ने उराग्रहके अधीन होके दूर फेक देता है, अरु अ पनी मनकल्पितरूप विष्ठाकों उठाके हाथमें धारण करता है तिस्कों देखके कोन नव्यजीवकों तिस पाम र जीवके पर दयाका अंकूरा उत्पन्न नही होवेगा? अर्थात् निकट नव्यसिधियोंकों तो आवश्य करुणा आवेगीही. जब तिसके परकरुणा आवेगी तब वो प्रतिबोधनी अवश्य देवेगा, क्योंकी जेकर कोई उरा ग्रही जो बुज जावे तो उसका काम हो जावे, अरु
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