Book Title: Chaturthstuti Nirnay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 192
________________ १७० चतुर्थस्तुति निर्णयः । तथा श्रीयावश्यक चूर्यादिकों का पाठ ॥ चानम्मासि यसंवरिए सवेवि मूलगुणउत्तरगुणाएं बालोयां दाऊण पक्कि मंति खित्तदेवयाए य उस्सग्गं करेंति के पुं चानम्मासिगे सिद्यादेवताए वि का स्तग्गं क रेंति । यावश्यकचूर्णै० चानम्मासिए एगे नवसग्ग देवता का सग्गो कीरति संवव रिए खित्तदेवयाए वि कीरति दिन || श्रावश्यक चूर्णैौ । तथा श्रुतदेवाया श्रागमे महती प्रतिपत्तिर्दृश्यते तथाहि सुयदेवयाए यासायलाए श्रुतदेवताजीए सुयमहिठियं तीए या सायला नचि साऽकिंचित्करी वा एवमादि याव श्यकचूर्णे जा दिहिदा मित्ते ए देइ पाइएनरसुर समिद्धिं ॥ सिवपुररथं खाणारयाण देवी नमो ॥ आराधनापताकायां यत्प्रभावादवाप्यंते, पदार्थाः क ल्पनां विना ॥ सा देवी संविदे न स्ता, दस्तकल्पल तोपमा ॥ उत्तराध्ययनवृहद्वृत्तौ प्रणिपत्य जिनव रें वीरं श्रुतदेवतां गुरून् साधून् ॥ यावश्यकवृत्तौ, यस्याः प्रसादमतुलं संप्राप्य जवंति नव्यजिन नि वहाः ॥ अनुयोगवे दिनस्तां प्रयतः श्रुतदेवतां वंदे ॥ अनुयोगद्वारवृत्तौ ॥ इस उपरले पाठ आवश्यक चूर्णी में नवनदेवता यरु क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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