Book Title: Chaturthstuti Nirnay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 175
________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १५३ तब तिसकों मिथ्यादृष्टि, महा अधम अज्ञानी कह ना चाहियें इतना तो तुमनी जानते होवेंगे, यह बातका जो आप तादृश विचारपूर्वक ख्याल ररको गे तो प्रतिदिन श्रुतदेवता, देवदेवताका कायोत्सर्ग निषेध करणा यह बहोत अयोग्य है असा आपही स मज जावेगें,हमकोंनी समजानेकी जरुर नही पडेगी. प्रश्नः-श्रुतदेवताके कायोत्सर्ग करणेसें क्या लान होता है? उत्तरः-इनके कायोत्सर्ग करनेसें महालान होता है यह कथन श्रीयावश्यक सूत्र जो तुम मानते हो तिसमेही करा है सो पाठ यहां लिखते हैं. सुयदेवयाए सायणाए ॥ व्याख्या श्रुतदेवतायाः आशातनयाः। क्रिया तु पूर्ववत् । आशातना तु श्रुतदें वता न विद्यते अकिंचित्करी वा । न ह्यनधिष्ठितो मौनीः खल्वागमः अतोऽसावस्ति नचाकिंचित्करी तामालंब्य प्रशस्तमनसः कर्मक्ष्यदर्शनात् ॥ ___ अब इसकी जाषा लिखते है. श्रुतदेवताकीआशा तना ऐसें होती हैकि जो कहे श्रुतदेवता नही है अथवा जेकर है तो कुबनी नहीं कर शक्ति है ऐसें कहनेवाला आशातना करने वाला है क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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