Book Title: Chaturthstuti Nirnay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 185
________________ चतुर्थस्तुति निर्णयः । १६३ अब इस चूर्मिकी जाषा लिखते है || मम मंगल इत्यादि गाथाकी व्याख्या ॥ मम वैसा यात्म निर्देश विषे है, अरु मंगल जो है सो दोप्रकारका है तिस्में एक इव्यमंगल और दूसरा जावमंगल तिनमें इव्यमं गल जो है सो दधि यतादिक है, और नावमंगल जो है सो एकांतिक अत्यंतिक है, अर्थात् एकांत सु खदाय और अंतरहित है. शारीरी मानसिक दुःखों के उपशामक होने करके मैरेकों जो संसारसें दूर करे सो मंगल है, इत्यादि शब्दार्थ है. यह मंगल अरिहंता दि विषय जेदसें पांच प्रकारके हैं सोइ दिखाते है. एक अरिहंत, दूसरा सि६, तीसरा साधु, चन था श्रुत, पांचमा धर्म, तिनमें सर्व जीवोंके शत्रुनू त ऐसे जो अष्टप्रकारके कर्म हैं तिनका जिनाने ना शकरा है, सो अरिहंत जानना, यरु जिनोने कर्म बंधन दग्ध करे है वो सिद्ध जानना तथा जो ज्ञा नादि योगकरके निर्वाणकों साधते है वो साधु जान ना, जो सुणीयें सो श्रुत कहना, वो श्रुत अंगोपांगा दि विविध प्रकारके यागम जानना, तथा जो दुर्गति में पडते हूए जीवोंकू धारण करे सो धर्म है, इहां च शब्द जो है सो समुच्चयार्थमें है, अन्यत्र चार ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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