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१६० चतुर्थस्तुतिनिर्णयः ।। कायोत्सर्ग नही कराया. तिस्का उत्तर लिखते हैंके श्रीवजस्वामीजीतो अतिशय युक्त थे तिस वास्ते उनकू तो एकही वार कायोत्सर्ग करनेसें देवदेवता प्रगट होके आज्ञा दे गश्थी, और अबतो नित्य कर ते है तोनी देवदेवता प्रत्यद नही होती है इस वा स्ते श्रीवजस्वामिजीकी बराबरी करके जो प्रतिदिन कायोत्सर्ग करनेका निषेध करें तिसकों सब मूल्मे शिरोमणि जानना, और प्रतिदिन देवदेवतादिकका जो कायोत्सर्ग करते है, सो बात जीवानुशासन यं थकी सादीसें करते है तिस्का पाठ हम उपर लिख आए है.
तथा दूसरा फेर आवश्यक सूत्रकानी पाठ लिख कर दिखाते है, सो पाठ यह है ॥ यमुक्तं ॥ मममं गलमरिहंता, सिमा साहू सुहं च धम्मो अ॥ सम्म दिही देवा, दितु समाहिं च बोहिं च ॥ १७ ॥ मम इत्यात्मनिर्देशे मंगलं दत्वमंगलं नावमंगलं च दवमंगलं दहियरकयाइयो, नावमंगलं एगंतियमचंतियं सारी राश्पचूहोवसामगत्तेण मांगलयति नावात् मंगं वा लातीत्यादिशब्दार्थत्वप्रवृत्तेश्च इदमेवाईदादिविषयं पं चविधं ॥ तदेवाह ॥ अरिहंता सिधा साहूसुयं च
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