Book Title: Chaturthstuti Nirnay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 174
________________ १५३ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ताका कायोत्सर्ग करते है. और पाहीमें जवन देवताका कायोत्सर्ग करते है, अरु कितनेक चातु मासिके दिनमें नवनदेवताका कायोस्सर्ग करते है. इति गाथार्थः ॥ * इस पाठमें जवनदेवता और देवदेवताका का योत्सर्ग करना कहा है. जेकर रत्नविजय, धनवि जयजी कहेगे कि यहतो हम मानते है. परंतु नित्य प्रतिदिन श्रुतदेवता और देवदेवताका कायोत्सर्ग करना नही मानते है. __उत्तरः-पंचवस्तु शास्त्रमें श्रीहरिनसूरिजीने श्रुतदेवता अरु देवदेवताका कायोत्सर्ग करना कहा है तिसका पानी उपर लिख आये है तो फेर तुम क्यों नही मानते हो? जेकर प्रतिदिन देवदे वता और श्रुतदेवताका कायोत्सर्ग करनेसें मिथ्या त्व किंवा पाप लगता है तो फेर पदी, चातुर्मा सी अरु सांवत्सरी रूप महा पर्वो के दिनोमें पूर्वोक्त कायोत्सर्ग करनेसेंनी महामिथ्यात्व और महा पाप तुमकों लगना चाहियें. तो आप विचारोकि अन्य दिनोमें जो पाप न करे सोही पुरुष निरवद्य महापौके दिवसोंमें तो अवश्यमेव पाप कर्म करें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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