Book Title: Chaturthstuti Nirnay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 171
________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १४ए अब इस जीवानुशासन ग्रंथके लेखकों जो कोश हत ग्राही, अनंतसंसारी, मिथ्यादृष्टि, उर्लनबोधी जीव न माने तो उसकों जैनसंप्रदायवाले क्योंकर जैनी कहेगा? जेकर उन्ने अपने मुखसें आपकों जैनी नाम ठहराय ररका तिस्से क्या वो जैन बन गया. श्री वीतरागके वचनोपर श्रद्दधान होने सिवाय जैन नही हो सकता है. पूर्वपदीका प्रश्नः-हमने रत्नविजयजी अरु धन विजयजीके मुख असा सुनाहै कि हमतो सिहां तोंकी पंचांगी मानते है. परंतु अन्य प्रकरणादि कु बनी नही मानतें है. उत्तरः- पैसा मानना नोका बहोत बेसमजी का है क्योंकि श्रीअजयदेवसूरिजीने श्रीस्थानांग सू त्रकी वृत्तिमें श्रुत झानकी प्राप्तिके सात अंग कहे है तद् यथा ॥ १ सूत्र, नियूक्ति, ३ नाष्य, ४ चूर्णि, ५ वृत्ति, ६ परंपराय, ७ अनुनव, यह लेखसें जब पंचागीमें पूर्वाचार्योंकी परंपरा माननी कही है, और तिसकोंजी रत्नविजयजी अरु धनविजयजी अ पने मनःकल्पित नवीन पंथ निकालनेका इरादा पूर्ण करनेके वास्ते नही मानते हैं, तबतो इनकों पंचांगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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