________________
चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १४५ अब इस पातकी नाषा लिखते है ॥ तहबंनसंति इत्यादि गाथाकी व्याख्या ॥ तथा शब्द वादातरके कहनके लीये है. ब्रह्मशांत्यादिका मकार पूर्ववत्, आदिशब्दसें अंबिकादि ग्रहण करणे, कितनेक इन की पूजनादिकका निषेध करते है. आदि शब्द ग्रह
सें शेष तिनके नचितका ग्रहण करना. तिनकी पूजाका निषेध करना योग्य नहीं है, क्योंके सिक्षा तादि महाशास्त्रोंकी वृत्तिके करणेवाले श्रीहरिन सूरिजी महाराजकों ब्रह्मशांति आदिककी पूजा नचि तकृत्य सम्मत है. इनोने श्रीपंचाशकजीमें इनका कथन करा है. इति गाथार्थः ॥ सोइ कहते है.
साहम्मिया इत्यादि गाथाकी व्याख्या ॥ यह शा सन देव जो है. सो सम्यग्दृष्टि है, महा ऋद्धिमान है, साधर्मिक है, इसवास्ते इनकी पूजा कायोत्स गर्गादि नचित कृत्य करना श्रावकोंको योग्य है. केवल श्रावकोनेही इनोकी पूजादिक करणी ऐसें नही सम जनां किंतु साधु संयमीनी इनोका कायोत्सर्ग क रते है. सोइ कहते है ॥
विग्यविधायण इत्यादि गाथा १००१ की व्या ख्या ॥ विघ्नविघात सो नपश्वरूप विघ्नोके विनाश
Jain Educatio9ternational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org