________________
चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ११३ धन विजयजीकों पूर्वोक्त सुविहित आचार्योंका लेख प्र माण नही होवे तो फेर धर्मकी प्रवृत्ति जो कुल चला नी वो सब पूर्वोक्त आचार्योकी परंपरासेही चलती है तिसकोंनी बोडके जिसमाफक अपनी मरजीमें आवे तिसमाफक बिचारे नोले जीवोंके बागें चलानेकों कु बनी मेनत तो नही पडती; परंतु नुकशान मात्र ३ तनाही होता है कि जैसें करनेसें सम्यक्त्वका नाश हो जाता है. यह बात कोनी जैनधर्मी होवेगा सो अ वश्य मंजूर ररकेगा फेर जादा क्या कहना.
फेरजी एक बात यह है कि जब पडिक्कमणेमें पू वोक्त देवतायोंका कायोत्सर्ग करणेसें इनकों पाप ले गता है ? तो क्या प्रव्रज्या विधिमें और प्रतिष्ठावि धिमें इन पूर्वोक्त देवतायोंका कायोत्सर्ग करनेसें । नकों पाप नही लगता होवेगा? यह कहना सत्य हैकि “आंधे चूहे थोथे धान,जैसे गुरु तैसे यजमान" इसि माफक है. यह अपदपाति सम्यक्दृष्टि निश्चय करेगा. मारवाड अरु मालवेके रहेने वाले कितनेक नोले श्रावक तो असे है कि जिनोने किसि बहुश्रुतसें यथार्थ श्रीजिनमार्गनी नही सुना है तिनोकों कुयु क्तिसें श्रीहरिनइसरियादिक हजारो आचार्यों जो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org