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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
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कहनीयां कहीयां है. और राइ पडिक्कम के अंत में चार इसे चैत्यवंदना करनी कही है. यद्यपि कि सी किसी शास्त्रोक्त विधिमें सामान्य नामसें चैत्य वंदना करनी कही है. तहांनी प्रतिक्रमणेकी श्राद्यं तक चैत्यवंदना में चार खुश्की चैत्यवंदना जान ले नी क्योंकि उपर लिखे हुए बहुत शास्त्रोंमें विस्तार सें चारही पूर्वक चैत्यवंदना करनी कही है. सर्व याचार्येका एकही मत है. किसी जगे सामान्य वि धि कहा है. और किसी जगे विस्तारसें विधिका कथन करा है.
सुज्ञ जन नवनीरूयोंकूं तो शास्त्रकी सूचना मा सेंही बोध होजाता है, तो जब बहु ग्रंथोंका लेख देखे तब तो तिनोंकों किंचित् मात्रची कदाग्रह नही रहता है. इस वास्ते हम बहुत नम्रतापूर्वक रत्नवि जयजी रु धनविजयजीसें कहतें हैं कि प्रथम तो आप किसी त्यागी गुरुके पास फेरके संयम लीजी ए, अर्थात् दीक्षा लीजीए, पीछे साधुसमाचारी, जि नसमाचारी, जगच्चं सूरिप्रमुख पूर्वपुरुषोंकों जिनकों तुमनेही अपने याचार्य माने है तिनकी तथा ति नोके शिष्य परंपरायकी समाचारी मानो यथाशक्ति
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