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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
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वश्यकम् ॥ ६ ॥ इवामो अणुसहिंति नणीय नववि सी पढइ तिन्नि थुइ ॥ मीनस देणं सकलया तो चेश् ए वंदे ॥ ५ ॥ इति रात्रि प्रतिक्रमणे पडावश्यकानि ॥ २ ॥ यह परिकयं चनदसी, दिांमि पुवं व तब देवसियं सुतं तं पडिक्कमि, तो सम्मं इमं कर्मकुएइ ॥ १० ॥ मुहपोती वंदणयं संबुद्धा खामणं तहा लो ए ॥ वंदणपत्य खामणं च वंदणयमह सुत्तं ॥ ११ ॥ सुतं हाणं, उस्सग्गो पुत्तिवंदणं तहयं ॥ पऊंतिय खामणयं, तह चरो बोन बंदाया ॥ १२ ॥ पुचवि हिमेव सर्व, देव सियं वंदा तो कुएई ॥ सिद्ध सूरि उस्सग्गो, जेन संतिथय पढणेय ॥ १३ ॥ एवं चिय च उमासे, वरिसे य जहक्कमं विहीरो ॥ परकचनमास वरिसें, सुनवरिनामंमि नापहं ॥ १ ॥ तह उस्सग्गो जोखा, बारस ( १२ ) वीसा ( २० ) समंगलचत्ता ॥ (४०) संबुद खामत्ति पण सत्त साहूण जहसंखं ॥ १५ ॥ इति श्रीपादिकादिप्रतिक्रमणपडावश्यकं संपूर्णम् ॥
इस उपरले पाठ में दैवसिक प्रतिक्रमणका विधि में चैत्यवंदना चार थुकी करनी, श्रुतदेवता तथा देवताका कायोत्सर्ग करना और तीन घुइयों
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