SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ चतुर्थस्तुति निर्णयः । :1 वश्यकम् ॥ ६ ॥ इवामो अणुसहिंति नणीय नववि सी पढइ तिन्नि थुइ ॥ मीनस देणं सकलया तो चेश् ए वंदे ॥ ५ ॥ इति रात्रि प्रतिक्रमणे पडावश्यकानि ॥ २ ॥ यह परिकयं चनदसी, दिांमि पुवं व तब देवसियं सुतं तं पडिक्कमि, तो सम्मं इमं कर्मकुएइ ॥ १० ॥ मुहपोती वंदणयं संबुद्धा खामणं तहा लो ए ॥ वंदणपत्य खामणं च वंदणयमह सुत्तं ॥ ११ ॥ सुतं हाणं, उस्सग्गो पुत्तिवंदणं तहयं ॥ पऊंतिय खामणयं, तह चरो बोन बंदाया ॥ १२ ॥ पुचवि हिमेव सर्व, देव सियं वंदा तो कुएई ॥ सिद्ध सूरि उस्सग्गो, जेन संतिथय पढणेय ॥ १३ ॥ एवं चिय च उमासे, वरिसे य जहक्कमं विहीरो ॥ परकचनमास वरिसें, सुनवरिनामंमि नापहं ॥ १ ॥ तह उस्सग्गो जोखा, बारस ( १२ ) वीसा ( २० ) समंगलचत्ता ॥ (४०) संबुद खामत्ति पण सत्त साहूण जहसंखं ॥ १५ ॥ इति श्रीपादिकादिप्रतिक्रमणपडावश्यकं संपूर्णम् ॥ इस उपरले पाठ में दैवसिक प्रतिक्रमणका विधि में चैत्यवंदना चार थुकी करनी, श्रुतदेवता तथा देवताका कायोत्सर्ग करना और तीन घुइयों For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy