________________
१५७ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। संयमतपमें उद्यम करो और जैनमतसें विरुक्ष जो तीन थुश्की प्ररूपणासें कितनेक जोले नव्य जी वोंकू व्युग्राही करा है. तिनोकों फेर सत्य सत्य जो चार थुश्योंका मत है सो कहकर समजावो, और उत्सूत्र प्ररूपणाका मिथ्या दुष्कत देवो,तो अवश्यही तुमारा मनुष्य जन्म सफल हो जावेगा,नही तो जिन वचनसें विरुद चलनेके लीये कौन जाने कैसी के सी अवस्था यह संसारमें नोगनी पडेगी. सो झा नीकों मालुम है, और आपने क्योपशम मुजब आपननी जानते है.
प्रश्नः-प्रथम तुम हमकों यह बात कहोकि स म्यग्दृष्टी देवतादिकके कोयोस्सर्ग करणेसें क्या ला न होता है ? और किसि किसि शास्त्र में सम्यग्दृष्टी देवतादिकोका मानना कायोस्सर्ग करना लिखा है,
और किस किस श्रावक साधुने यह कार्य करा है, सो सब हमकू समजावो॥ ___ उत्तरः-श्रीपंचाशक सूत्रके एकोनविंशति पंचाश काका पाठमें इसी तरेसें लिखा है, सो आपको लिख बताते है. तथाच तत्पाः ॥ किंच अमो विअनिचि तो, तहा तहा देवयापिएण ॥ मुजणाणदिन ख
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org