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१२२ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। वधान रहना चाहीये. श्रीजिनवचन उहापनसें ज माली जैसे बड़े बड़े महान्पुरुषोंकोंनी कितना दीर्घ संसार हो गया है. यह बातों अलबता आप श्राव कोंमेसें बहोतसें जनोंने सुनी दोवेगी तो फेर वो पु रुषोंके आगें आपनतो कुबनी गणतीमें नही है, तो फेर हमजादा कहा कहै. यह हमारी परम मित्रता सें हितशिदा है. सो अवश्य मान्य करोगे जिस्सें आ प सम्यक्त्वका आराधक होके संसारचमणसें बच जावेगें, श्रीवीतराग वचनानुसार चलेगें तो शीघ्रही आपना पदकों पावेगें इस बातमें कुबनी संशय ररक ना नही. समजुकों बहोत क्या कहना. हमतो शंका दूर करणे वास्ते पूर्वाचार्योंके रचे हूए बहोतसे ग्रंथों का पाठ नपर लिखके समाधान कर दिखाया. फेरनी कितनेक ग्रंथोका पाठ लिख दिखलाते हैं ।
तथा श्रीराजधनपुर अर्थात् श्रीराधणपुरके जांमा गारमें पूर्वाचार्यकृत षडावश्यक विधि नामा ग्रंथ है, तिसका पाठ यहां लिखते है. षडावश्यकानि यथा॥ पंचविहायारविसु, बिहेन मिह साहु सावगो वावि ॥ पडिकमणं सहगुरुणा, गुरुविरहे कुण कोवि ॥१॥ वंदित्तु चेश्याई, दा चनराश ए खमासमणे ॥ नूनि
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