Book Title: Chaturthstuti Nirnay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 138
________________ ११६ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः । ष्टकचिंतनं ततो मंगलार्थ सिक्षाएं बुदाणमिति स्तु तीनां लणनं मुहपत्तीपेहणं वंदणयं उपविश्य प्रति क्रमणसूत्रनयनं अनुजिमि आराहणाए पनणित्ता वंदणयं खामणयं यदि पंचाद्याः साधवो नवंति तदा त्रयाणां तक्रियतां तत्र रात्रिके दैवसिके पादिकादिस कसंबुसमाप्तिदामणेषु मयितारः सकलं दाम एकसूत्रं नरांति दमणीयास्तु परपत्तियं पदात् अवि हिणा सारिया वारिया चोश्या पमिचोश्या मणेण वा याए काएण वा मिलामि उक्कडं इति नणंति।अथ वं दणपुवं बमासिया चिंतण आयरिय उवद्याए उस्स ग्गा बम्मासिय चिंतणं करिज पच्चरकाणं जाव उद्योयं जणित्ता मुहपत्ती पमिलेहणं वंदणयं पञ्चरकाणं लामो अणुसहिं विशाललोचनदलं० इति स्तुतित्रयनणनं शक्रस्तवः। पूर्णा चैत्यवंदना ॥ तिलकाचार्यकत विधि प्रपामें ॥ संपूर्णा चैत्यवंदना अस्तोत्रा ततो गुरून् वं दित्वा यथाज्येष्ठं साधुवंदनं दमा० बाप डिक्कम ठा यहं श्वं दमा सवस्सवि देव सियं करेमि नंते का नुस्सग्गो समयं दिनातिचारं चिंतार्थ ॥ श्रावकाणां तु नामि दंसमीति गाथाष्टकचिंतार्थ अथ उद्योयं जणित्वा मुहपत्तीपेहणं वंदणयं आलोयणं उपविश्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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