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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
दवाप्यते पदार्थाः कल्पनां विना ॥ सा देवी संविदे नः स्तादस्तकल्पलतोपमा ॥ २ ॥ या पाति शासनं जैनं सद्यः प्रत्यूहनाशिनी ॥ सानिप्रेतसमृदधर्थ नूया च्छासनदेवता ॥ ३ ॥ ये ते जिनवचनरता वैयावृ त्योद्यताश्च ये नित्यं ॥ ते सर्वे शांतिकरा नवंतु सर्वा णि याद्याः॥ ४ ॥
इस उपर ले पाठमें श्रुतदेवता, शासनदेवता, arraaari इन तीनोका कायोत्सर्ग और ती नोकी तीन घुइयां कहनी कही है. इसीतरें सर्वग छोंकी समाचारीयोंमें यही रीती है. और प्रतिष्ठा कल्पोमेंजी पूर्वोक्त देवतायोंका कायोत्सर्ग अरु थु यां कहनीयां कही है.
यहा कोई रत्नविजयजी अरु धनविजयजी प्रश्न करते है के प्रव्रज्याविधिमें और प्रतिष्ठाविधिमें तो हम पूर्वोक्त देवतायोंका कायोत्सर्ग अरू थुइ कहनी मानते है. परंतु प्रतिक्रमणोमें नही मानते.
उत्तरः- प्रतिक्रमणे में वेयावञ्चगराणं, श्रुतदेवता, दे देवता इन तीनोके कायोत्सर्ग, अरु शुश्यों कहनी यह सब बात शंकासमाधानपूर्वक अनेक शास्त्रों की साक्षी सें हम ऊपर लिख खाए है. जेकर रत्नविजय रु
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