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१०७ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः।। योत्सर्ग करना तथा तिनकी थुइ कहनी कही है।
तथा सम्यक्त्व देशविरत्यादिके आरोपणेकी चैत्य वंदनामें प्रवचन देवी, नुवन देवता, खेत्र देवता, वे यावच्चगराणं इनके कायोत्सर्ग और इन सर्वोकी ? थम् पृथग थुइ कहनी कही है. इस समाचारीके अंत श्लोकमें ऐसें लिखा हैके श्रीअनयदेवसूरिके राज्यमें यह समाचारी रची गई है. और इसी पुस्तककी स माप्तिमें ऐसें लिखा है इति श्रीखरतरगडे श्रीअजयदेव सूरिकता समाचारी संपूर्णा ॥ यह पुस्तकनी हमारे पास है, किसीकों शंका होवे तो देख लेवे ॥
जैसे इस समाचारीमें विधि लिखि है, तैसेंही श्रीसोमसुंदरसूरिकत, श्रीदेवसुंदरसूरिकत, श्रीयशोदे वसूरिके शिष्यके शिष्य श्रीनरेश्वर सूरिकत समाचा रीयोंमें तथा श्रीतिलकाचार्यकृत विधिप्रपा समाचा रीमें ऐसालेख है सो यहां लिख दिखाते हैं।
श्रीतिलकाचार्यकृत सैतीस हारकी विधिप्रपा स माचारीका पाठ ॥ पुनः गृही दमा० श्वाकारेणतुप्ने अम्दं सम्यक्त्व० श्रुतम् देशवि० सामायिक आरोप गुरुण्यारोपणा गृहीवादमा नाकारेण तुम्ने अम्द सम्य श्रुत देश सामायिका रोपणनु निंदिकरत
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