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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
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वञ्चगराएणय ६ उस्सग्गा हुंति कायद्या केवलं शांति नाथाराधनार्थं कायोत्सर्गः सागरवरगंजीरेत्यंतं लोग स्तुवोयगरा चिंतनतः सप्तविंशत्युङ्खासमानः कार्यः । शेषेषु तु नमस्कार चिंतनं क्रमेण स्तुतयः श्रीमते शां तिनाथायेत्यादि ॥ १ ॥ उन्मृष्टरिष्टेत्यादि ॥ २ ॥ यस्याः प्रसादेत्यादि ॥ ३ ॥ ज्ञानादिगुणेत्यादि ॥ ४ ॥ यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्येत्यादि ॥ ५ ॥ सर्वे यहां बिकेत्यादि ॥ ६ ॥ तनुं रामोक्कारं कट्टिय जाणु सुनवित्र सक्क रिहालाई बोत्तं च नलिऊ जयवीयरायेत्या दिगाथे च इतीयं प्रक्रिया सर्वनंदीषु तुल्यत्वे तत्समो चारणत्वं चेश्य वंदणातरं खमासमणपुत्रं नोइ ॥
इन पाठोंका जावार्थ:- राईपडिक्कम के अंत में चार थुईसें चैत्यवंदना करनी कही है. हम ऊपर जितने शास्त्रोंकी सादी में देवसि पडिक्कमका वि धि लिख खाए है. तिन सर्व ग्रंथों में राइ पडिक्कम के अंत में चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है. से संजय कालमिति महानाष्यवचनप्रामाण्यात् ॥
तथा श्री जयदेवसूरिने तथा तिनके शिष्यने दें वसि पक्किमकी खादिमें चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है और श्रुतदेवता अरु क्षेत्र देवताका का
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