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चतुर्थ स्तुति निर्णयः ।
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जी कहीयें है, सो यह है. नविंत इत्यादि पाठ सि 5 है. नवरं निसिहीयत्ति० संसारकारण निषेधात् नैषेधिकी मोह. यह दशमोधिकारः ॥ तथा चत्तारि इत्यादि यहनी सुगम है. नवरं परमह० परमार्थ करके परंतु कल्पना मात्रसें नही निष्ठितार्था दूया है इनको यह एकादशमोधिकारः ॥ अथ या दिसें रंजके वादे है जावजिनादिक अथ उचित प्रवृत्तिके लीये यह पाठ पढे ॥ arraaree मि त्यादि " वैयावृत्य करनेवाले जो गोमुख यक्ष, चक्रेश्वर्यादीकों जो शांतिके करनेवाले, सम्यग्रदृष्टि समाधिके करनेवाले है इन हेतुयोंसे तिनका कायो त्सर्ग करता हूं ॥ इहां वंदराव त्तियाए इत्यादि पाठ न कहना अपितु अन्न ब्रूससीएल मित्यादि पाठ कहना. तिनको अविरति होनेसें देश विरतिसेंजी नीचले गु एस्थानमें वर्त्तनसें वैयावृत्य करनेवालोंकों सुना है. यह बारमा अधिकार हैं. इस पाठ मेंनी चार थुईसें चैत्यवंदना करनी कही है.
तथा अहिलपुर पाटणके फोफलीये वाडेका नांमागार में श्री अजयदेवसूरिकृत समाचारी है तिस का पाठ लिखते है | प्रव्रजितेन चोनयकालं प्रतिक्र
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