________________
एन
ए७ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। सयल कुसल किरिया, फलाण सिवाण पढइ थयं ॥१४॥ अह सुथ समिति देवं, सुत्र देवीए करे उ स्सग्गं॥ चिंतेश् नमोक्कार,सुण व देव ती थुयं ॥१५॥ एवं खित्तसुरीए, उस्सग्गं कुण सुणइ देश थुई॥ पढि कण पंच मंगल, मुव विसइ पमद्य संमासे ॥ १६॥ पु व विहिणेव पेसिथ, पुत्तिं दाकण वंदणे गुरुणो॥ बामो अणुसहित्ति, नणि जाणुहिं तो गई ॥१७॥ गुरु थुई गहणे थुइतिमि, वक्ष्माणरकरस्सरो पढई ॥ सकबयबवं पढिय, कुण पडित उस्सग्गं ॥ १७ ॥ एवंता देवसियं ।।
नाषाः-इस उपरले विधिमें देवसि पडिक्कमणेमें प्रथम चैत्यवंदना चार थुझसें करणी पी. अंतमें श्रु त देवता और देव देवताका कायोत्सर्ग करणा यो र तिनकी थुइ कहनी ऐसे कहा है। ___ यह धर्मसंग्रह प्रकरण श्रीहीर विजयसूरिजोके शिष्यके शिष्य श्रीमान विजय उपाध्यायजीका रचा दु वा है और सरस्वतीने जिनकों प्रत्यक्ष होके न्याय शास्त्र विद्या और काव्य रचनेका वर दीना. अरु जिनकों काशीमें सर्व पंमितीने मिलके न्यायविशार द न्यायाचार्यकी पदवी दीनी, और जिनोने अत्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org