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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
दूर करणेसें मेतार्यमुनिके पूर्व जीवके मित्र देवताकी तरें देवतानी समाधि रु बोधि देनेमें समर्थ है. इ स वास्ते तिनोंकी प्रार्थना बलवती है.
फेर वादी तर्क करता है कि देवादिकोंके विषे प्रा र्थना बहुमानादि करनेसें तुमारी सम्यक्त्व मलीन क्यों नही होवेगी ? अपि तु होवेगी ही.
उत्तरः- वो देवता हमकों मोक्ष देवेंगे इस वास्ते हम तिनकी प्रार्थना बहुमान नही करते है, किंतु ध मध्यानके करणे में जो कदापि विघ्न या कर पडे तो ति नको विघ्न दूर करते हैं, इस वास्ते प्रार्थना करते है. पूर्व श्रुतधारीयोंने इसकों याचरणेसें, और श्रागममें कहने सें, जैसें करणेमें कोइनी दोष नही है.
यावश्यक चूर्मिमें श्रीवज्रस्वामिकें चरित्रमें पैसें कहा है. वहां निकट अन्य पर्वतथा वाहां गए तहां देवताका कायोत्सर्ग करा, सो देवी जागृत न, अरु कहने लगी की तुमने मेरे पर बडा अनुग्रह करा सें कहके आज्ञा दीनी.
तथायावश्यक कायोत्सर्ग नियुक्तिमेंजी कहा है कि चातुर्मास संवत्सरिके प्रतिक्रमणेमें क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करणा. और पक्षिप्रतिक्रमणेमें जवनदेव
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