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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ३१ वा तीन थुइ परिहायमान कहे तदपी अाचार्य स मीपें आकर अविधिपरितगवणियाका कायोत्सर्ग कर ना, यह कल्पविशेषचूर्णिके चतुर्थ नदेसेमें कहा है।
तथा चैत्यघर वा उपाश्रयमें आकर के गुरु समीपे अविधि परिणावणियांका कायोत्सर्ग करना और शां तिनिमित्त स्तोत्र कहना ॥१॥ परिहायमान तीन धुइ नियम करके होती है, अजितशांतिस्तवादिक क्रमसें तहां जानना ॥॥ यह कथन कल्पवृहत् नाष्यमें है। ___ तथा कोई कहे तिहांदी कायोत्सर्ग क्यों नही करतें ? गुरु कहते हैं यहां नन्नानादि दोष होते है, तिसके लीये तहांसे था कर चैत्यघरमें जावे, तहां चैत्यवंदना करके, शांतिनिमित्त अजितशांतिस्तवन पढे अथवा हायमान तीन थुइ कहे, तदपीनें आप ने स्थानपर आ करके आचार्य समीपे अविधि परिका वणियांका कायोत्सर्ग करे जैसा कथन आवश्यक वृत्तिमें करा है. इहां सामान्य चूर्णीमें तीन थुझसें चैत्यवंदना मृतकसाधुके परतवनेवाले साधुयोंकों करनी कही है, सो मध्यम चैत्यवंदनाका मध्यमो कृष्ट तीसरा नेद है, अरु पूर्वोक्त नव नेद्रोंमें यह बहन नेद है. सो तो एक आचार्यके मतें मृतक परि
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