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६५ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः । थन उपर मथुरा दपक और कुबेरदत्ता देवीका ह ष्टांत कहा है ॥ तिस दृष्टांतका नावार्थ यह हैके प्रथम मुनिके कहनेसें संतुष्ट होकें कुबेरदत्ता देवीने श्रीसुपार्श्वनाथ स्वामीके वखतमें मथुरा नगरी में श्री सुपार्श्वनाथ अरिहंतका मेरु पर्वत सदृश स्तुन प्रति मा सहित रचा. कितनेक काल पी. अन्यदर्शनी और जैनीयोंका यह स्तुन बाबत विवाद द्या, उहां अन्यदर्शनी अपने मतका स्तुन कहने लगे,
और जैनीनी अपने मतका स्तुन है जैसा कहने लगे. जब राजासेंनी यह विवाद न मिटा तब श्रीसं घने तिस कालमें मथुरा दपक नामा साधूकू अति शयवान जानके बलाया. तिस मथुरापक नपर पति लां कुबेरदत्ता देवीने संतुष्ट होके कहा था के हे मुनि में क्या तेरे मन इलित कार्यकू संपादन करूं? तब मथुरादपक मुनिने कहाके मैं तपके प्रनावसे सर्व कर सक्ता हूं तो तेरे असंयताके साहाय्य वांडनेसें मुजे क्या प्रयोजन है? तब कुबेरदत्ता रोष करके जती रही सो मथुरादपक फिरके आया तिसने तपसें देवीकों बाराध्या. तब देवी प्रगट होके कहने लगी. में तेरा क्या कार्य करूं? तब मथुरादपक कहने लगा. श्री
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