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१. श्
चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
चिक होता. तब तो उचिंतादि गाथाकी तरें इसका जी व्याख्यान श्रीहरिनसूरिजी न करते, परंतु न नोने व्याख्यान करा है, इस वास्ते सिद्धादि गाथा योंके साथ वेयावच्चगराणं इत्यादि यह पाठ अनुवि ६ अर्थात् प्रोता या है. बिचमें टूटा दूया नही है. इस वास्ते सिद्धाणं इत्यादि गाथायोंके साथ प्रोता यानी पढने योग्य है.
जेकर तुं कहेगा के ललितविस्तरा में श्रीहरि नसूरिजीका करा हुआ व्याख्यान हमकूं प्रमाण नही है तब तो सकल चैत्यवंदनाके क्रमका अनाव होवेगा. क्योंके सूत्रमें चैत्यवंदनाका ऐसा क्रम क हा नही है. और ललित बिस्तरा बिना चैत्यवंदनाके क्रमका अन्यग्रंथ में व्याख्यानके अनावसें कदाचित् किसी ग्रंथ में व्याख्यान करानी होगा. सोनी ललित विस्तराके अनुसार होनेसें पीछेंदी करा है, और न वीन व्याख्यान, जेकर कोई वानी करे तोनी सो व्याख्यान, संसारकी वृद्धि करनेवाला है, और जो ललित विस्तरामें व्याख्यान है, सो गुरुपरंपराके उप देशसें खाया है इसवास्ते स्वछंद कल्पनासें नही है. यहां मध्यस्थ होके विचार करणा योग्य है, सूक्ष्ा
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