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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ए संघकी जीत कर. तब कुबेरदत्तानी कहने लगी के तेरा मेरे असंयतिसें क्या प्रयोजन अब उत्पन्न दुवा के जिस्सें तें मुजकों याद करा ? तदपी साधुने प चात्ताप करा. और कुबेरदत्ता देवीसें मिहामि उक्कडं दीना. तब देवी ने कहा में कलकू स्तुनके उपर श्वेत पताका करूंगी, और संघ तथा राजाकों कहे जेकरी श्वदिने प्रजातकों श्वेत वर्णकी पताका होवे, तो ह मारा थुन जानना अरु जो अन्य वर्णकी पताका होवे, तो हमारा नही जानना. यह बात सुन कर राजाने अपने नौकरोंसें पहरा दिलवाया परंतु प्रव चन नक्त देवीने प्रनातमें श्वेतपताका कर दीनी ति सकूँ देखकें राजा अरु प्रजाने नत्कृष्ट कल कल शब्द क रकें कहा के बहुत कालतक यह जैनशासन जयवंत रहीयो, अरु संघ जयवंत रहो, जिनशासनके नक्त जयवंत रहो, इसीतरे सम्यक्दृष्टि देवताका स्मरण करनेसें प्रवचनकी प्रनावना देखकें बहुत लोकों जै नधर्मी हो गये, मुनिनी सुगतिमें गया ॥ इति मथुरा
पकवृत्तांतः ॥ इस वास्ते सम्यक्दृष्टि देवताका अ वश्यमेव कायोत्सर्ग करकें घुइ कहनी चाहियें. .. अथ जे अधिकार जिस प्रमाणसें कहे हैं. ति
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