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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
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पारवाजे है, और कुशेपश्वमें सम्यकदृष्टियोंकों शां तिके करनेवाले और समाधिके करनेवाले वैसा जो कूष्मांम, यात्रादि यह इनकों व्याश्रित्य होके कायो त्सर्ग करता हूं, कायोत्सर्ग करके तिन शासनके र क देवतांयोंक थुई कहनी इत्यादिक कहनेसें श्री हरिसूरिजी ने चौथी थुईका कहना यावश्यकमें क हा है. इसका जो निषेध करे सो जैनशासनमें नही है पैसा जाननां ॥
तथा श्रीप्रवचनसारोदारमें श्रीनेमिचंद सूरिजीनें सा पाठ कहा है | पढमं नमोबु १, जेई या सि - २, अरिहंत चेश्याएं ३, ति लोगस्स ४, सबलोए ५, पुरकर ६, तमतिमिर 9, सिद्धाणं ॥ ८८ ॥ जो दे वाणवि ए, नऊत सेल १०, चत्तारिषदसदोय ११, वेयावञ्चगराएणय १२, अहिगारुल्लिंगण पयाई ॥ ८ ॥ इस पाठके बारमें अधिकार में शासन देवताका कायोत्सर्ग और चौथी थुई कहनी कही है ॥ २ ॥ ३
की टोकामें सिसेनाचार्ये चार थुइसें चैत्यवंदना क रनी कही है. तथाचतत्पाठः ॥ समयभाषया स्तुति चतुष्टयं ॥ तिनसें जो चैत्यवंदना सो मध्यम चैत्यवं दना जाननी ॥ ३ ॥
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