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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
में प्रतिक्रमणकी यादिमें चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है और श्रुतदेवता, देवदेवताका कायोत्सर्ग करणा कहा है और श्रीनवदेवसूरिजीने यति दिनचर्या में प्रतिक्रमणमें चार खुश्की चैत्यवंदना करनी कही है और श्रुतदेवता अरु क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग और थुइ कहनी कही है तथा चैत्यवंद नाके मध्यमोत्कृष्ट जेदमेंजी चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है ॥
तथा पंचवस्तु ग्रंथ में इस मुजब पाठ है सो लि खते है | थुइ मंगलंमि गुरुणा, नच्चरिए सेसे १ स गा थुई बिंति ॥ चि ंति तर्जथेवं, कालं गुरु पाय मूल् म्मि || || व्याख्या ॥ स्तुतिमंगले गुरुणा श्राचार्येए उच्चारिते सति ततः शेषाः साधवः स्तुतीर्बुवते ददर्त त्यर्थः । तिष्ठति ततः प्रतिक्रांतानंतरं स्तोकं कालं केत्या ह गुरुपादमूले याचार्यातिके इति गाथार्थः । प्रयोजन माह । पम्हे हमे रसायण उफेडिन हवइ एवं ॥ यावरणासु देवय, माइणं होइ उस्सग्गो ॥ ५१ ॥ त त्र विस्मृतं स्मरणं नवति विनयश्व फटितो नामतीतो नवत्येव उपकार्यासेवनेन एतावत्प्रतिक्रमणं श्राचर पात् श्रुतदेवतादीनां नवति कायोत्सर्गः । यत्र आदि
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