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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
का है तिसके अंतरगत चैत्यवंदना विधि है. तिसमें चा र इसे चैत्यवंदना करनी लिखी है. तिसमें चोथी चुके वास्ते पैसा पूर्वोक्त पाठ लिखा है. तिसका श्र र्थ कहते है. जैसे कहके पुण्य के समूह करके उपचि त होया या उचितों विषे उचित प्रवृत्तिके अर्थे सें कहे " वेयावच्च " वैयावच्चके करणहार, जिनशास नकों साहाय्यकारी गोमुख यक्तादिक सर्वलोककों शां ति करनेवाले, सम्यकदृष्टियोंकों समाधि करणहारे, इन संबंधि इनकों प्राश्रित्य होके कायोत्सर्ग करता हूं. हां वंदराव तिखाए इत्यादि पाठ न कहना, तिन के अविरत होनेसें अन्यत्रोव सितेनेत्यादि पूर्ववत् कहना ॥
तथा कलिकाल सर्वज्ञ बिरुद धारक साढेतीन को टी ग्रंथका कर्त्ता से श्री हेमचंद सूरिजीने योगशास्त्र में चिरंतन पूर्वाचार्योकी रचित गाथा करके प्रतिक्रम एका विधि लिखा है. तिसमें दैवसिकप्रतिक्रमणेकी यादिमें चैत्यवंदना चार थुइसें करनी कही है, तथा श्रुतदेवता देवदेवताका कायोत्सर्ग करना और ति नकी कहनी कही है इसीतरें श्राद्ध विधिमें पाठ लिखा है ||
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